मैं तो आकर उलझ गईं
पराये ही देश।
यहां दुःख ही हैं दुःख
ना हैं सुख का अवशेष।।
तुमने आकर के मुझको
संभाला गुरु।
शुक्रिया मैं तुम्हारा
अता क्या करूँ।
तुम ना होते यहाँ
तो मैं जाती कहां।
बिन तुम्हारे गुरू
कौन हैं खैर ख्वा।।
कैसे जावोगे तुम छोड़
के अब मुझे।
ऐसी बातों पे कैसे
भरोषा करू।।
मैं तो आकर उलझ गईं
मेरा तुमसे हैं नाता
पुराना कोई।
ये गवाही मुझे
मेरे मन ने कही।।
कितने करके इशारे
बुलाया मुझे।
फिर ना मानू तो ऐसी
ख़ता क्यू करू।।
मैं तो आकर उलझ गईं
चाहे चेहरा बदल लो
मुझे कुछ नही।
पर निगाहें ना तुम ने
बदलना कहि।।
तेरे वादों का ही
वास्ता दूँ तम्हे।
ये अरज तुमसे हरपल
किया मैं करू।।
मैं तो आकर उलझ गईं
जानता हूँ कि वादा
तुम्हारा अटल।
कोइ कर ना सके
उसमे रद्दो बदल।।
बस जरा इंतजारी
समय की तुम्हे।
देख लेना ज़माने
मैं दावा करू।।
मैं तो आकर उलझ गईं
???? जयगुरूदेव ????
रचनाकार:- प्रेम देशमुख
जयगुरुदेव आवाज़ टीम