जब कबीर साहब अपना चोला 120 वर्ष की उम्र में छोड़ने वाले थे, तब अपने सबसे प्रिय भक्त छत्तीसगढ़ के महाराजा धर्मदास से बताया कि धर्मदास! लिख लो, आगे हम फिर आयेंगे। कब आयेंगे, क्या करेंगे और किसको मेरी पहचान होगी! उसका वर्णन नीचे….
‘हंसा घबड़ईहो मत, हम फिर आवेंगे’
काशी धाम मुक्ति का नाका, तहां हम यज्ञ करावेंगे ।
चार वर्ण छत्तीस जाति में, हम घर-घर अलख जगावेंगे।
अबकी जगईहो कोरी चमारा, और फिर जईहो राजन दरबारा।
गुरु नाम का डंका लेकर, हम शब्द का ढोल बजावेंगे ।
कोटीन जीव को त्रास देख हम, डूबत हंस बचावेंगे ।
आदि सनेही जितने जीव हैं, वे ही हमें पहचानेंगे।