परम पूज्य संत बाबा जय गुरु देव जी महाराज

!! जय गुरुदेव नाम प्रभु का !! बाबा जी का कहना है, शाकाहारी रहना है, कलियुग जा रहा है, सतयुग आ रहा है

रे मन धीरज क्यों न धरे ।

एक सहस्त्र नौ सौ के ऊपर ऐसो योग परे ।

शुक्ल जयनाम संवत्सर, छट सोमवार परे ।

हलधर पूत पवार घर उपजे, देहरी छत्र धरे ।

मलेच्छ राज्य की सगरी सेना, आप ही आप मरे ।

सूर सबहि अनहोनी होइहै, जग में अकाल परे ।

हिंदू मुगल तुरक सब नाशै, कीट पतंग जरे ।

सौ पे शुन्न (शून्य) के भीतर, आगे योग परे ।

मेघनाद रावण का बेटा, सो पुनि जन्म धरे ।

पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, चहुँ दिशि काल फिरे ।

अकाल मृत्यु जग माहीं ब्यापै, परजा बहुत मरे ।

दुष्ट दुष्ट को ऐसा काटे, जैसे कीट जरे ।

एक सहस्त्र नौ सौ के ऊपर, ऐसा योग परे ।

सहस्त्र वर्ष लों सतयुग बीते, धर्म की बेल बढ़े ।

स्वर्ण फूल पृथ्वी पर फूले, पुनि जग दशा फिरे ।

सूरदास यह हरि की लीला, टारे नाहिं टरे ।

संवत दो हजार के ऊपर छप्पन वर्ष चढ़े ।

माघ मास संवत्सर व्यापे, सावन ग्रहण परे ।

उड़ि विमान अम्बर में जावे, गृह गृह युद्ध करे ।

मारूत विष फेंके जग माहिं, परजा बहुत मरे ।

द्वादस कोस शिखा हो जाकी, कंठ सूं तेज भरे ।

सूरदास होनी सो होई, काहे को सोच करे ।

संवत दो हजार के ऊपर छप्पन वर्ष चढ़े ।

पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, चहुं दिस काल फिरे ।

अकाल मृत्यु जग माहिं व्यापै, परजा बहुत मरे ।

सहस्त्र वर्ष लगि सतयुग व्यापै, सुख की दशा फिरे ।

स्वर्ण फूल बन पृथ्वी फूले, धर्म की बेल बढ़े ।

काल ब्याल से वही बचे, जो गुरु का ध्यान धरे ।

सूरदास हरि की यह लीला, टारे नाहिं टरे ।