सवाल स्वामी जी क्या अण्डा पौष्टिक भोजन है? जवाब अण्डा पौष्टिक भोजन नहीं है। जो लोग ऐसा कहते हैं वह सही नहीं है। अण्डा शाकाहारी नहीं है। अण्डे से जीव का जन्म तो होता है। पक्षियों के मासिक खून से ही उसका निर्माण होता है और उसी गन्दे मासिक खून को और लोथड़े को आमलेट […]
सवाल बाबा जी जो दुनियां हम देखते हैं और यहाँ कर्म करते हैं फिर यहाँ दुख-सुख भी पाते हैं। लोग कहते हैं कि यहीं सब कुछ है, स्वर्ग-नर्क सब यहीं है और यहीं हमें सब भोगना पड़ता है। तो क्या इसके अतिरिक्त कोई लोक या स्वर्ग-नर्क नहीं है ? जवाब हमारे मानने या न मानने […]
सवाल स्वामी जी! संसार के बन्धन बड़े विकट हैं, कैसे कटेंगे? जवाब संसार के बन्धन बहुत से हैं एक दो नहीं। काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार ये सब तो प्रत्यक्ष बन्धन हैं। इन्हें काटना सरल काम नहीं। इनको ढीला करना है तो शील, क्षमा, संतोष, विरह, विवेक को अपनाना होगा। काम आवे तो उसे […]
एक राजा था। वह बहुत न्याय प्रिय तथा प्रजा वत्सल एवं धार्मिक स्वभाव का था। वह नित्य अपने इष्ट देव को बडी श्रद्धा से पूजा-पाठ ओर याद करता था। एक दिन इष्ट देव ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिये तथा कहा– “राजन् मे तुमसे बहुत प्रसन्न हैं। बोलो तुम्हारी कोई इच्छा हॆ?” “यह तो सम्भव […]
एक राजा था जिसने अपने राज्य में क्रूरता से बहुत सी दौलत इकट्ठा करके आबादी से बाहर जंगल में एक सुनसान जगह पर बनाए तहखाने मे सारे खजाने को खुफिया तौर पर छुपा दिया था। खजाने की सिर्फ दो चाबियां थी, एक चाबी राजा के पास और एक उसके एक खास मंत्री के पास थी। […]
एक दिन फकीर के घर रात चोर घुसे। घर में कुछ भी न था। सिर्फ एक कंबल था, जो फकीर ओढ़े लेटा हुआ था। सर्द रात, फकीर रोने लगा, क्योंकि घर में चोर आएं और चुराने को कुछ नहीं है, इस पीड़ा से रोने लगा। उसकी सिसकियां सुन कर चोरों ने पूछा कि भई क्यों […]
गुरुवर दया के धाम मेरा आपको नमन। मिलती रहे सदा ही मुझे आपकी शरण।। गुरुवर दया के धाम मेरा आपको नमन। जंजाल जग का सारा मुझे घेर के खड़ा। सब आश छोड़ कर के तेरे व्दार आ पड़ा।। आये समझ न कौन सा अब मैं करू जतन। विषयों में भाग भाग मेरे जिंदगी के दिन। […]
तेरी महिमा मैं क्या जानू। तेरा किया कैसे पहचानूं।। इतना नही हैं ज्ञान। मैं नादान मैं अनजान।। कभी भरोषा तुझपे आये। कभी डोल मेरा मन जाये।। रहे ना एक समान। मैं नादान मैं अनजान।। कब तक धीर बंधाऊ खुद को। रास न कोई आये मुझको।। सारा जगत वीरान। मैं नादान मैं अनजान।। बेबस हाथ कुछ […]