सत्संग जल महात्मा कहते हैं कि:- सत्संग जल जो कोई पावे, मैलाई सब कट कट जावे। मानव शरीर इस सृष्टि की श्रेष्ठ रचना है। इस पृथ्वी पर चैरासी लाख योनियों में से केवल मनुष्य ही परमात्मा से मिलने की योग्यता और शक्ति रखता है। पशुओं, पक्षियों, पेड़-पौधों या और दूसरे निचले स्तर के प्राणियों को […]
View Postयह सृष्टि काल भगवान की है और तुम्हारे कर्मों के अनुसार तुम्हें फैसला सुनाया जाऐगा। तुम अच्छा करो या बुरा करो उसी के अनुसार फैसला हागा। काल भगवान में दया नहीं है। जो कुछ भी तुम करते हो उनके कर्मचारी बराबर नोट करते रहते हैं। साथ ही तुम्हारे क्रिया कलापों की फिल्म बनती रहती है। […]
View Postसत्संग वचन जो साधक हैं साधना करते हैं और उनके ऊपर जब गुरू की दया हो जाती है तब सिमटाव होने लगता है। आत्मा दोनों आँखों के पीछे बैठी हुई है और उसका प्रकाश पैरों तक फैला हुआ है और भजन-ध्यान के समय प्रकाश ऊपर की तरफ सिमटने लगता है। ऐसा अनुभव साधक को होने […]
View Postसत्संग वचन सत्संगियों को अपना जीवन ऐसा बनाना चाहिऐ जैसे कछुआ। जब जरूरत पड़ी संसार के काम के लिए फैले फिर भीतर चले आए। उस प्रभु की याद में लग जाओ और घर परिवार में प्रेम से रहो। यदि तुमने अपना जीवन ऐसा बना लिया तो क्या साधन क्या भजन। तुम्हारा काम बना हुआ है। […]
View Postसत्संग वचन आज कलयुग का समय है। कलयुग कहते हैं ‘कर-युग’। महापुरूषों ने भव सागर से पार होने के लिए कलयुग को बहुत आसान कर दिया। त्रेता की क्रिया आप नहीं कर सकते हो, द्वापर की क्रिया भी आप नहीं कर सकते हो क्योंकि आपके कर्म खराब हो गऐ, खान-पान बिगड़ गया, आचार-विचार बदल गऐ। […]
View Postसत्संग वचन देखो प्रेमियों तुम यहाँ बैठ गऐ तो बुद्धि और विवेक से काम लो। शरीर यहाँ बैठा है और मन कहीं और भाग रहा है इससे कुछ होने वाला नहीं है। तुम मन को, चित्त को रोककर अपनी बैठक बना लो। चार अफीमची एक जगह बैठ जाते हैं तो उन्हें दूसरी बात याद नहीं […]
View Postसत्संग वचन वह वस्तु जो बिना किसी चेस्टा के स्वयं आती है वह हमारे भाग्यानुसार है। जो साधक हैं जिनका ध्यान एकाग्र हो चुका है और अन्तर के मण्डलों में आते-जाते हैं वे अपना भाग्य आसानी से जान सकते हैं। मन जब तक जीवात्मा का साथ नहीं देगा तब तक हम ध्यान-भजन नहीं कर सकते। […]
View Postसत्संग वचन अनामी पुरूष सबके कर्ता-धर्ता हैं। इन्होंने अपनी इच्छा से, अपनी मौज से अगम लोक की रचना की और अगम पुरूष को स्थापित किया। फिर अलख लोक की रचना की और अलख पुरूष को स्थापित किया। ये ही वो मालिक हैं जिन्होंने सतलोक की रचना की और सतपुरूष को स्थापित किया। अनामी पुरूष ने […]
View Postसत्संग वचन इस शरीर में सबसे बड़ा चोर, सबसे बड़ा दुश्मन मन है। इसको जीतने की युक्ति किसी के पास नहीं। बाहरी किसी भी क्रिया जप, तप, पूजा, पाठ से तीरथ-व्रत करने से नदियों में डुबकी लगाने से यह वश में नहीं होता। यह चोर और दुश्मन किसका है ? सुरत का। बाहरी क्रियाओं से […]
View Postसत्संग वचन जब मन दुनियां से उचाट हो जाऐ, चीजों में अभाव आ जाऐ तो समझना चाहिऐ कि गुरू की दया हो रही है और होने वाली है तो तुरन्त भजन पर बैठ जाना चाहिऐ। दया के उस ज्वार भाटे में मन आ गया तो खिंचाव हो जाऐगा। जिन लोगों ने प्रभु को प्राप्त किया […]
View Postसत्संग वचन इस शरीर में सबसे बड़ा चोर, सबसे बड़ा दुश्मन मन है। इसको जीतने की, वश में करने की युक्ति किसी के पास नहीं है। बाहरी क्रियाओं से पूजा-पाठ करने से, तीरथ-व्रत करने से यह वश में नहीं होता है। यह चोर और दुश्मन किसका है? सुरत का यह बाहरी क्रियाओं से जीता नहीं […]
View Postसत्संग वचन कर्मों का विधान बड़ा जटिल है इसे बुद्धि के द्वारा नहीं समझा जा सकता। लड़का हो, भाई हो या पत्नी हो सबको अपने अपने कर्म भुगतने पड़ते हैं। प्रत्येक आत्मा को अपने किऐ का हिसाब देना पड़ता है। कोई भी दूसरे के कर्मों का भार अपने ऊपर नहीं ले सकता। यदि आपके लड़के […]
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